91-8894689279 info@mysirmaur.com

नाहन शहर नगीना आए दिन एक, रहे महिना......


सिरमौर जिला मुख्यालय, नाहन...! 

खूबसूरत...! दिलकश...! ऐतिहासिक...! परन्तु उपेक्षित।

समृद्ध, रहस्यमयी और प्राचीन इतिहास। नटनी के शाप से गर्क सिरमौर रियासत। कई बार उजड़ी, फिर बसी। मूल स्थल राजबन से पलायन। कालसी, रतेश-जुब्बल आदि स्थलों का कठिन सफर। और आखिरी पड़ाव नाहन।  

सन् 1621 में महाराजा सिरमौर, कर्म प्रकाश ने नाहन की खूबसरती के कारण ही यहां पर अपनी रियासत का मुख्यालय स्थापित किया था। सिरमौर नरेश को यहां आने के लिए नाहन के महान तपस्वी बाबा बनवारी दास ने प्रेरित दिया था। बाबा बनवारी दास के नाहरों (सिंह) से ही शायद कालांतर में नाहन का नामकरण हुआ था। 

खूबसूरत नाहन शहर...! यहां पर स्थित पांच जलाशयों, पुराने स्मारक, प्राचीन देवालय, खूबसूरत सैरगाह, घने जंगल, धरोहर उद्योग, खूबसूरत गलियां, उत्कृष्ट अंडरग्राउंड सिवरेज सिस्टम और सबसे बढ़कर सांप्रदायिक सदभाव, इस शहर को अन्य शहरों से अगल ही खड़ा करता है।

ऐसा अदभुत सौदर्य...!  जो प्रदेश के अन्य किसी भाग में दिखाई नहीं देता। इसीलिए तो यहां कहावत प्रचलित है... ‘नाहन शहर नगीना आए एक दिन रहे महीना’।

स्वर्णिम इतिहास...! इसके बवाजूद भी आज भी यह प्राचीन और पुरातन शहर उपेक्षित है। सवाल उठता है। इतना बड़ा खजाना होने के बावजूद भी यह खूबसूरत शहर। और यहां रहने वाले लोग क्यों बेचैन हैं। क्यों यहां के नौजवान अपने भविष्य को आशंकित हैं।

नाहन की मूल समस्या...! यदि समस्याओं की बात करें तो पेयजल यहां की मूल समस्या है। तकनीकी शिक्षण संस्थाओं का अभाव। और रोजगार की कमी। स्वास्थ्य सेवाओं का समय पर सुधार न होना आदि शामिल है। 

कई यक्ष प्रश्न ...! क्यों नहीं हमने अपनी युवा पीढि़यों को नाहन की खूबसूरती, यहां उपस्थित प्राचीन धरोहरों और इसके प्राचीन गौरवमयी इतिहास के बारे में बताया-पढ़ाया। क्यों हमने जानबूझ कर नाहन के बारे में नकारात्मकता पैदा की।

जन प्रतिनिधि...! नाहन क्षेत्र के लोगों ने अपनी समझ और उपलब्ध विकल्प के अनुरूप जन प्रतिनिधियों को चुना। हो सकता है उन्होंने अपने समर्थ के अनुसार इस शहर को विकसित करने का प्रयास किया हो। लेकिन हम इस शहर को वांछित गति से आगे नहीं बढ़ा पाए। जबकि हमारे पड़ोस का सोलन शहर जो सदियों बाद अस्तित्व में आया आज कहां से कहां पहुंच गया।

जागरूकता की कमी....! कहीं न कहीं नाहन क्षेत्र के लोगों की अपने अधिकारों के प्रति। जागरूकता की कमी भी उनके स्वयं के शोषण का कारण बनी। नगरजन अपनी समस्याओं और अधिकारों के प्रति ज्यादा संवेदनशील नहीं रहे। या फिर कहीं उन्होंने मान लिया कि उनका भाग्य तो बस यही है। उन्होंने अपने आपको और अपनी पीढि़यों को। भाग्य की उस नाव पर सवार कर दिया। जिसका खेवनहार कोई नहीं था। और यह नाव उलटती-पुलटती कभी भी अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाई।

नाहन में क्या है...! आज नाहन में किसी से भी पूछ लीजिए। यहां क्या है? जवाब मिलता है- कुछ भी तो नहीं। बस सुनापन और खालीपन। एक वीराने जैसा। क्यों हमने अपनी संतानों और युवा पीढ़ी को नाहन के गरिमामय इतिहास और यहां की समृद्ध विरासत के बारे में नही बताया।

क्यों हमने उन्हें यह नहीं बताया कि नाहन वह शहर है जहां पांच-पांच जलाशय हैं, यहां सबसे पुराना उद्योग नाहन फाउंडरी है, यहां सबसे प्राचीन देवालयों मे जग्गनाथ मंदिर है, यहां देश की सबसी पुरानी म्यूनिसिल कमेटी है। यहां सांप्रदायिक सदभाव है।

यहां क्या नहीं है। सबसे पुरानी लाईब्रेरी है। यहां लखनऊ जैसी पुरानी खूबसूरत गलियां है। यहां विशाल दिल्ली गेट है। क्यों हमने अपने नाहन के सफल राजनीतिज्ञों, फिल्मकारों, साहित्यकारों, खिलाड़यों, प्रशासनिक अधिकारियों और देश के लिए मर मिटने वाले जवानों के बारे में नहीं बताया। 

क्योंकि हमने यह मान लिया। यहां कुछ भी तो नहीं है। इसलिए हमने अपनी संतानों को यहां से दूर रहने के लिए प्रेरित और विवश किया। हमने उनसे कहा, रोजगार चाहिए, शिक्षा चाहिए तो कहीं ओर जाओ। पर नाहन से दूर रहो।

हमें सोचना होगा। हमें प्रतिज्ञाबद्ध होना होगा कि हम अपनी युवा पीढ़ी को नकारात्मकता से दूर रखेंगे। हम पहले अपनी युवा पीढ़ी को नाहन की हर उस ऐतिहासिक घटना और ऐतिहासिक धरोहरों की जानकारी देंगे। जिन्हें जानने के लिए विश्व बेताब है।

हमें सरकारी मशीनरी पर भरोसे के साथ स्वयं ही नाहन के ऐतिहासिक धरोहरों के रख रखाव और इनके सौंदर्यकरण की तरफ पग बढ़ाना होगा। हमें कोशिश करनी होगी। किसी भी तरह नाहन शहर के गौरवशाली इतिहास के बारे में। विद्यार्थियों और युवा पीढ़ी तक बहुमूल्य जानकारी पहुंचाई जाए। स्कूल-कालेज स्तर के छोटे-छोटे एजुकेशनज टूर आयोजित किए जाएं। ताकि उन्हें हम नाहन के ऐतिहासिक धरोहरों के बारे में अवगत करवा सकें।

हमें यह करना ही होगा। क्योंकि हम अब तक कुछ कर ही नहीं पाए। हमने अपनी समस्याआंे, महत्कांक्षाओं और इच्छाओं को ‘नटनी के शाप’ का लिबादा ओढ़ाकर उसे दबाने और ढकने की कोशिश की है।

लेकिन अब समय बदल चुका है। नटनी के शाप का कलंक धोना ही होगा। नाहन से बाहर रहने वाले हमारी युवा पीढ़ी अपनी जन्मभूमि के लिए फिक्रमंद हैं।

इस निस्तेज हो चुके शहर को। पुनः प्रकाशमान करने के लिए। कई बंधु-भगिनी तैयार हैं। फिर क्यों न हम इन अवसरों का लाभ उठाएं।

हमने समय के गर्द में दबे। नाहन के ऐतिहासिक धरोहरों को झाड़-पौंछ कर बाहर लाने का प्रयास मात्र किया है। हमने इस पुरातन शहर को एक नीवन कलेवर के साथ डिजिटाईज कर विश्व पटल पर रखने का प्रयास किया है।

हमारा प्रयास, बस प्रयास भर न रह जाए।

इसलिए आओ...! उठो और तब तक जुटे रहो...! जब तक लक्ष्य का भेदन न हो जाए...!

कृपया रेटिंग दें :