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सिकलीगर (भंदेला)

भंदेला यानि सिकलीगर सिख है। नाहन में रहने वाले इस समुदाय विशेष की बात करना यहां अनिर्वाय हो जाता है। यह समुदाय सिखों की तरह परम्परागत रूप से सिर पर पगड़ी बांधने की बजाए जुड़ा बनाना अथवा पटका लगाना पसंद करता है। इसकी वजह संभवतः इनके व्यवसाय की प्रकृति रही होगी।

सामाजिक-आर्थिक रूप से यह समुदाय काफी कमजोर है। देशभक्ति, समाज के प्रति समर्पण और गुरू अथवा अराध्य के प्रति इनका श्रद्धा-भाव अटूट है। नाहन में आयोजित होने वाले गुरू पर्वों में समुदाय के बच्चों से लेकर बूढ़े तक सभी श्रद्धापूर्वक अपनी सेवा देते हैं। 

नाहन में रहने वाले सिकलीगर, पूर्व में मुख्यतः मेटल अथवा लोहे से सम्बन्धित कार्य करते थे। नाहन में इनके आगमन का काल निश्चित नहीं है। संभवत भारत पाक बंटवारे के दौरान नार्थ-वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस से इनका नाहन में आगमन हुआ। इसकी एक वजह यह है कि 1981 की जनगणना के अनुसार हिमाचल में रहने वाले सिकलीगरों की संख्या मात्र 795 थी।

लोहे के औजार बनाना और उन्हें पाॅलिश करना इनका मुख्य व्यवसाय था। जब इस व्यवसाय से परिवार का भरण पोषण नहीं हो पाया तो इन्होंने जंगलों का रूख किया। कुछ लोगों ने जंगलांे से इंधन लकड़ी काट बाजार में बेचना शुरू किया। इनकी निर्धनता की मुख्य वजह अशिक्षा और अनियोजित परिवार और अन्य बुराइयां माना जाता है।

किन्तु समय परिर्वतन के साथ इस समुदाय में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ने से इनकी सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। अब समुदाय के लोग, विशेषकर युवा पीढ़ी छोटे-छोटे व्यापारियों, कुशल श्रमिकों, सरकारी सेवा आदि के माध्यम से अपना जीवन बसर कर रहे हैं।

सिकलीगर इतिहास

सिकलीगरों समुदाय को इनके व्यवसाय के कारण विभिन्न प्रदेशों में अलग-अलग नाम से पुकारा जाता है। देश के 12 प्रदेशों के करीब 34 जिलों में 83 विभिन्न श्रेणियों में सिकलीगर समुदाय फैला हुआ है। सिकलीगर मुख्यतः हिमाचल, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, दिल्ली, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्रा, कर्नाटका, आंध्रा और जम्मू कश्मीर काफी संख्या में रहते हैं।

इतिहासकार मानते हैं कि सिकलगर अरबी शब्द सैकल (Saikal) का अपभ्रंश है जिसका अभिप्रायः धातु को पाॅलिस करने वाला है। धातु सम्बन्धी व्यवसाय से जुड़ा होेने के कारण सिकलीगरों को ‘लोहार’ मान लिया जाता है।

सिकलीगरों का मूल स्थान राजपूताना अथवा वर्तमान का राजस्थान है। दर्ज रिकार्ड के अनुसार मारवाड़ इस समुदाय का उत्पति स्थल है। समुदाय के लोग मारवाड़ रियासत के सैनिक हथियार जिनमें तलवार, भाले आदि शामिल थे, को तैयार करने, पाण चढ़ाने और पाॅलिश करने का काम करते थे।

कई इतिहासकार इनके रहन-सहन और घुमंतु प्रकृति के कारण इन्हें इंडो आर्यन एथनिक स्टोक वंजारा अथवा बंजारा समुदाय का ही एक हिस्सा मानते हैं। इसकी मुख्य वजह यह भी है कि इस समुदाय के पास खेती भूमि नहीं है। खेती योग्य भूमि न होना भी इस समुदाय का मारवाड़ से पलायन का मुख्य करण बना। कई परिवार ऐसे भी हैं जो आज भी खानाबदोशों की तरह (दवउंकपब बनसजनतम) यहां से वहां घूमते फिरते जीवन यापन कर रहे हैं।

गुजरात और राजस्थान में सिकलीगर हिन्दू हैं जबकि पंजाब के अधिकतर सिकलीगर सिख हैं। इसी तरह हरियाणा में कुछ सिकलीगर हिन्दू हैं और कुछ सिख। हिमाचल के सिकलीगर मुख्यतः सिख हैं। 

समझा जाता है कि महाराजा रणजीत सिंह के स्वर्णिम शासनकाल में कुछ सिकलीगरों ने सिख धर्म को अपनाया था।  

हिमाचल के सिकलीगर अपना मूल स्थान राजस्थान का मारवाड़ मानते हैं। हिमाचल में रहने वाले सिकलीगरों में कुछ ही हिन्दू हैं जबकि अधिकतर सिख हैं।

नाहन में रहने वाले सिकलीगर सिख हैं। अधिकतर सिकलीगर सिख मांसाहारी हैं और सुअर का मांस खाते हैं। महिलाओं में अभी भी पर्दा प्रथा कायम है। खान-पान और रहन-सहन की यही प्रवृति उन्हें परम्परागत सिखी अथवा सभ्रांत सिखों से थोड़ा अलग दर्शाती है।

 

(नोटः उपलब्ध जानकारी के अनुसार हमने इस आर्टिकल को तथ्यपरक बनाने का प्रयास किया है। यदि आपको इसमें किसी तथ्य, नाम, स्थल आदि के बारे में कोई सुधार वांछित लगता है तो info@mysirmaur.com पर अपना सुझाव भेंजे हम यथासंभव इसमें सुधार करेंगे)

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