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लखदाता पीर -यहां हिन्दू-मुस्लिम सभी शीष नवाते हैं
नाहन स्थित...! लखदाता पीर दरगाह...! सर्वधर्म का प्रतीक...! अथवा सिंबल आॅफ यूनिटी..!
लखदाता पीर को देवतुल्य माना जाता है। उनका मूल नाम सैयद सुल्तान अहमद था। उनके पिता का नाम सैयद जैनुल आबिदीन था। माना जाता है कि लखदाता पीर, अरब देश के बगदाद में ख्यातिप्राप्त फकीर सैयद उमरशाह के वंशज हैं।
कालांतर में चमत्कारों और दीन दुखियों की सेवा के कारण। उन्हें कई उपनामों से जाना गया। जिसमें सबसे लोकप्रिय है, लखदाता पीर।
नाहन स्थित लखदाता पीर की मजार पर। लोग दुआएं मांगने आते है। कुछ अपनी कई समस्याएं और दुख-दर्द से निजात पाने के लिए। बाबा की मजार पर पहुंचते हैं।
लखदाता पीर दरगाह, नाहन के धरोहरों में से एक है।
यदि पुरानी जानकारी को सही माना जाए। कहा जाता है कि सिरमौर रियासत के गर्क होने के काफी वर्षों पश्चात। राजबन से स्थानांतरित कर सिरमौर की रियासत नाहन स्थापित करने पर चर्चा हुई।
इसी दौरान महाराज को परामर्श दिया कि ‘मुल्तान’ (वर्तमान में पाकिस्तान) में स्थित लखदाता पीर स्थल से। र्दो इंट और मिट्टी लाकर अपनी रियासत के किसी पवित्र स्थल पर स्थापित करें। मुल्तान से ईंट और मिट्टी लाकर। नाहन के पक्का तालाब के समीप दरगारह स्थापित की गई। जिसे कालांतार में लखदाता पीर दरगाह कहा गया।
प्रत्येक बृहस्पतिवार को यहां लोग बड़ी संख्या में शीश नवाने आते हैं। लोग यहां आकर जहां अपने दुखों को बाबा से बांटते हैं। वहीं उनसे दीर्घ आयु और सुख समृद्धि की कामना कभी करते हैं।
पीर महाराज हमेशा ही भटके हुए को राह दिखाते हैं।
पीर बाबा की मजार में पीढियों से सेवारत है। बाबी खान का परिवार। कहते हैं ढाई-तीन सौ वर्ष पहले नाहन घने जंगलांे से घिरा हुआ था। रियासत के दो राजकुमार शिकार पर निकले थे। शिकार करते हुए जब वह दरगाह के पास से गुजरे तो वहां पर ढोल बजाया जा रहा था। राजकुमारों ने इसे बंद करने के लिए कहा। तभी राजकुमार पछाड़ा खाकर गिर पड़े और उनके अंग भंग हुए।
इस घटना का पता जब महारानी को चला तो वह पीर बाबा के दरबार में पहुंची। महारानी ने मजार में रोट (गुड़ रोटी) चढ़ाकर मजार का नव निर्माण करने की प्रतिज्ञा की।
फिर महारानी क्या देखती है कि उनके दोनों राजकुमार तंदरूस्त होकर आपस में खेल रहे हैं। महारानी ने मजार में तुरबत बनाने की आज्ञा दी। मजार को दो दिन में तैयार किया गया था, ऐसा भी कहा जाता है।
वर्तमान में स्थानीय लोग मजार पर चमड़ी रोग के निवारण के लिए भी आते हैं। कई लोग ‘मस्सों’ के उपचार के लिए भी बाबा से प्रार्थना करते हैं। इसके लिए लोग गुड़ और आटे में पकाया गया रोट चढ़ाने की परम्परा रही है।
(नोटः उपलब्ध जानकारी के अनुसार हमने इस आर्टिकल को तथ्यपरक बनाने का प्रयास किया है। यदि आपको इसमें किसी तथ्य, नाम, स्थल आदि के बारे में कोई सुधार वांछित लगता है तो info@mysirmaur.com पर अपना सुझाव भेंजे हम यथासंभव इसमें सुधार करेंगे)