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नाहनः सिटी ऑफ पांड्स


जल संग्रहण के लिए तालाबों का निर्माण। हमारी प्राचीन जीवन-संस्कृति का हिस्सा है। ये तालाब जहां जल के संग्रहण के लिए फायदेमंद हैं वहीं पर्यावरण संरक्षण में भी इनका अपना महत्व है। प्राचीन और ऐतिहासिक शहर नाहन की खूबियों में शामिल हैं, यहां अवस्थित पांच ताल यानि तालाब। 
जितने ताल नाहन में हैं उतने ताल प्रदेश के अन्य किसी शहर में नहीं है। यहां अवस्थित ताल, शहर को अलग ही पहचान देते हैं। इसलिए नाहन को तालों का शहर यानि ‘द सिटी ऑफ पांड्स’ भी कहा जाता है।
जरा कल्पना कीजिए। उस जमाने में इन तालों की खूबसूरती क्या रही होगी। जब हमारे पास संचार माध्यम न के बराबर थे और मनोरंजन के साधन सीमित। तब जलस्रोतों के रूप में इन तालों की उपलब्धता निःसंदेह शहर के लिए वरदान से कम नहीं थी। रानीताल, पक्का तालाब, कच्चा तालाब, फाउंडरी तालाब और रामकुंडी तालाब शहर की खूबसूरती को चार चांद लगा देते थे। 
नाहन के तालांें में रानीताल प्रमुख है। कहा जाता है कि सिरमौर रियासत की राज महिलाएं यहां स्नान कर शिव मंदिर में उपासना किया करती थीं। रानीताल से पैलेस यानि महल तक एक गुफा भी बनाई गई थी। गुफा के माध्यम से राज परिवार की स्त्रियां स्नाने के लिए सीधे इस ताल में पहुंचती थी। गुफा के एक भाग को तालाब के किनारे में देखा जा सकता है। यह तालाब एक झील के समान है और इसकी खूबसूरती अत्यंत लुभावनी।
प्राचीन शहर नाहन के बारे में जितने भी इतिहासकारों ने लिखा, सभी ने नाहन के खूबसूरत तालाबों का उल्लेख जरूर किया है। 
नाहन के ये पांच ताल निःसंदेह रियासतकाल की शासन व्यवस्था और नगरीय सुविधाओं का अनूठा उदाहरण है। 
यह अलग बात है कि वर्तमान में नाहन के तालों की हालत ज्यादा अच्छी नहीं है। तालों की साफ-सफाई का कोई विशेष ध्यान नहीं रखा गया है। इनकी गरिमा और इतिहास के अनुरूप इनके रख रखाव पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा है। कच्चा तालाब तो पहले ही नाहन के मार्डन बस अडडे में तब्दील हो चुका है। इसी प्रकार एक समय में पक्का तालाब में भी एक बड़े शॉपिंग कम्पलैक्स बनाने पर विचार चल रहा था। 
हर वर्ष सितम्बर माह में पक्का तालाब में बावनद्वादसी के अवसर पर मेला लगता है। शहर के आसपास के करीब 50 स्थानीय देवी-देवता इस दिन यात्रा पर आते हैं और भगवान जगन्नाथ मंदिर में ठहरते हैं। यहां उन्हें जलविचरण करवाया जाता है। इसके पश्चात भगवान बावन को पक्का तालाब में जल विचरण करवाया जाता है। 
रियासतकाल से यह परम्परा चली आ रही है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान बावन, श्रीविष्णु के पांचवे अवतार हैं। परम्परा के अनुसार भादों माह के 12वें दिन इस मेले का आयोजन किया जाता है। 
धार्मिक मान्यता है कि यह दिन धार्मिक और पवित्र दिन होता है। इस दिन सभी नदी-नाले गंगा के समान पवित्र हो जाते हैं और इन जलस्रोतों में स्नान करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है। अथवा मृत्यु उपरांत उन्हें स्वर्ग लोक में वास और शांति मिलती है।
अच्छा होता यदि किसी पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्यरत एनजीओ को नाहन के तालाबों के सौंदर्यकरण और उचित रखरखाव का जिम्मा सौंप दिया जाता। इससे तालाबों की पुरानी गरिमा भी बनी रहती और नाहन शहर सुंदर और स्वच्छ दिखाई पड़ता। 

 

(नोटः उपलब्ध जानकारी के अनुसार हमने इस आर्टिकल को तथ्यपरक बनाने का प्रयास किया है। यदि आपको इसमें किसी तथ्य, नाम,  स्थल आदि के बारे में कोई सुधार वांछित लगता है तो info@mysirmaur.com पर अपना सुझाव भेंजे हम यथासंभव इसमें सुधार करेंगे)

 

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