'सर्प के देवता हैं गुगा महाराज'
गुगा महाराज....! या फिर गोगा जाहर वीर चौहान..! इन्हें सर्प का देवता माना जाता है। गुगा महाराज सांप्रदायिक सदभाव के प्रतीक भी हैं। हिंदू, मुस्लिम और सिखों में संयुक्त रूप से पूजनीय है। इस लिए कई बार वहम पैदा हो जाता है। गुगा महाराज हिंदू थे या फिर मुस्लिम।
मुझे आज भी याद है। नाहन में अपनी स्कूली दिनों में हम। गुगा माड़ी मेले का खूब आनंद उठाते थे। कई बार गावों में आयोजित होने वाले गुगा गान। और बसेरे में रात-रात जागते थे। बाल्यकाल में गुगा जी महिमा के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी।
गुगा महाराज का जन्मः...! गुगा जी का जन्म संवत 1003 में ददरेवा के राजा जीव राज चौहान के घर हुआ था। ददरेवा, राजस्थान के चुरू जिला का प्रसिद्ध स्थल है। गुगा महाराज की माता बछल देवी निसंतान थी। वह गुरू गोरख नाथ की शिष्या थी। वह गोरख नाथ की पूजा अराधना में रहती है। गुरू के आशीर्वाद से ही गुगा का जन्म हुआ था।
गुगा महाराज का नामकरण...! गुगा के नामकरण के बारे में दो मान्यताएं हैं। पहला यह कि गुरू गोरख नाथ के आशीर्वाद से प्राप्त पुत्र का नाम। माता बछल देवी ने गोगा रखा। गुरू के पहले अक्षर ‘गु’ और गोरख के पहले अक्षर ‘गो’ से यह गुगो पड़ा, जिसे बाद में गोगा कहा गया। दूसरी मान्यता यह है कि पुत्र प्राप्ति के लिए। गुरू गोरखनाथ ने बछल देवी को। गुगल वृक्ष का फल दिया था। इस प्रकार गुगल से ही गुगा या फिर गोगा नामकरण हुआ।
सर्प देवता...! गुगा महाराज मुख्यतः सर्प देवता के रूप में पूजनीय हैं। सर्पदंश से मुक्ति के लिए गुगा जी की पूजा की जाती है। प्रचलित कथा के अनुसार सर्प दंश व्यक्ति को गुगा माड़ी में लाया जाता है। कहते हैं जब गुगा जी पैदा हुए तो तक्षक नाग उन्हें डसना चाहता था। गुगा जी ने गुस्से मेें तक्षक को निगल लिया।
समाधि..! लोक गाथा के अनुसार। गुगा महाराज ने अपने अधर्मी मौसेरे भाईयों का वध कर दिया। जब उनकी माता को इस बात का पता चला। वह बहुत क्रोधित हुई। माता ने गुगा से अपना मुख कभी न दिखाने के लिए। कहते हैं गुगा महाराज माता से विमुख हो गए।
एक समसय पश्चात गुगा जी दुखी होकर गुरू गोरखनाथ के पास पहुंचे। उन्होंने गुरू से मुक्ति देने के लिए कहा। गुरू गोरख नाथ ने। अपने चिमटे के एक वार से भूमि हिला दी। इससे भू-स्खलन हुआ। और गुगा महाराज अपनी प्यारे नीले घोड़े सहित समाधि में समा गए। गुगाजी के बाद उनकी माता और पत्नी भी समाधिग्रस्त हो गए।
‘‘गोगा जी हिंदू थे पर उनका पूजा स्थल मस्जिदनुमा क्यों’’
गुगा महाराज को देश भर में। अलग-अलग नाम से जाना जाता है। राजस्थान मे गुगो, पंजाब में गुगा पीर, उत्तर प्रदेश में जाहर बाबा। मेवाड़ में गातोड़ जी, गुजरात में गोगा महाराज, दिल्ली क्षेत्र में गोगाजी, मुस्लिम समुदाय में जाहर पीर बाबा आदि। इस दृष्टि से गुगा महाराज सर्वधर्म और सांप्रदायिक सदभाव के प्राचीन समय से स्थापित प्रतीक हैं।
इस आलेख में। गोगा जी के बारे में मैं दो तथ्य स्पष्ट करना चाहता हूं। जैसे कि मैं और मेरे जैसे कई अज्ञानी। अक्सर गोगा जी के धर्म, संप्रदाय और उनके पूजा स्थल के मस्जिदनुमा रूप के कारण संशय रहे। इसी प्रकार का दूसरा संशय भी गोगा जी की छड़ी को उठाने वाले और माड़ी में पूजा इत्यादि कर्म निभाने वाले समुदाय के बारे में बना हुआ था।
कल जब मैंने शिमला में अपनी एक सहयोगी अधिकारी। मिस नेगी से गुगा माड़ी मेले की चर्चा की। उन्होंने कहा कि हरिजन समुदाय के लोग गुगा जी की छड़ी को माल रोड़ शिमला में घुमाते हैं। इसलिए उन्हें लगता है कि ये शायद उन्हीं के देवता होंगे।
इन दोनों तथ्यों की तह तक जाने के लिए। मैंने काफी प्रयास किया। इन दो संदर्भों के बारे में जो जानकारी प्राप्त हुई है यह आपसे शेयर कर रहा हूं।
गोगा जी हिंदू थे..! यह स्पष्ट है कि गोगा महाराज हिंदू थे। उनके पिता राजा जीव (झीव) राज चौहान थे और माता रानी बछल देवी थीं। अब प्रश्न यह उठता है कि जब गोगा जी हिंदू थे तो फिर आज हम जितनी भी गोगा जी की मेड़ियां अथवा माड़ियां देखते हैं। वे मस्जिदनुमा अथवा मुस्लिम पैट्रन पर क्यों बनी हुई हैं। इन मेड़ियों का लुक मस्जिद जैसा क्यों दिखाई पड़ता है। यद्यपि कई जगह यह मंदिर और मजिस्द दोनों का मिश्रण प्रतीत होता है।
कायमखां....! इतिहास कार मानते हैं। हिसार के फौजदार सैयद नासिर ने ददरेवा को लूटा। वह वहां से दो बालक एक चौहान दूसरा जाट अपने साथ ले गया। यहां पहुंचने पर चौहान वंश वाले का नाम कायमखां तथा जाट वंश का नाम जैन रखा गया। बाद में कायमखां हिसार का फौजदार बना। माना जाता है कि कायमखां ददरेवा (गोगा जी रियासत और जन्म स्थल) के मोटेराय चौहान का पुत्र था। यह मोटेराय चौहान गोगाजी के वंशज थे।
बादशाह फिरोजशाह तुगलक....! कालांतर में जब गोगा महाराज की कीर्ति चारों दिशाआं में फैली। गोगा जी के मुस्लिम वंशों ने उन्हें पीर और पैगम्बर की तरह प्रस्तुत किया। एक तथ्य यह भी है कि बादशाह फिरोजशह तुगलक ने। गोगा जी के चमत्कारिक दर्शन पाकर। अपने सिंध विजय के उपरांत ददरेवा में मस्जिदनुमा स्थल का निर्माण किया। इस प्रकार देश के विभिन्न भागों में उनकी मेड़ियां अथवा माड़ियां बनने लगीं। जिनका आकार मस्जिदनुमा बनाया गया। यद्यपि कई स्थानों पर बनी मेड़ियां एक मंदिर का आभास भी देती हैं।
दूसरा तथ्य...! जो प्रश्न मेडम नेगी ने किया था। उसका उत्तर इस प्रकार हो सकता है। कहते हैं जिस समय गोगा जी का जन्म हुआ। उसी समय एक ब्राहमण के घर नाहर सिंह वीर, एक हरिजन के घर भज्जू कोतवाल और एक बाल्मीकि के घर रत्ना जी का जन्म हुआ। ये तीनों गुरू गोरख नाथ के भक्त थे और गोगा महाराज के सहयोगी।
कालांतर में यह परम्परा रही कि गोगा महाराज के मंदिर/माड़ी में पुजारी। अथवा उनकी छड़ी का नेतृत्व इन्हीं समुदाय के वंशजों किया।
कुछ और महत्वपूर्ण तथ्य...! माता से विमुख होकर समाधि लेने की। या महमूद गजनवी से युद्ध करते हुए वीरगति प्राप्त करने की। गोगा जी सर्प के देवता किस प्रकार हुए।