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जन-जीवन

 नाहन क्षेत्र का जन-जीवन और यहां की संस्कृति। हिमाचल के अन्य प्राचीन शहरों से बिल्कुल ही भिन्न है। कहने को तो नाहन सिरमौर जिला मुख्यालय है। किन्तु यहां का जन जीवन, रहन सहन, खान पान और संस्कृति ज्यादातर मैदानी भागों से मेल खाती है। यहां के लोक-जीवन में पड़ोसी राज्य हरियाणा के नारायणगढ़, यमुनानगर, छछरौली, जगाधरी तथा उत्तर प्रदेश के सहारनपुर, मेरठ, रूढ़की और पूरब की स्पष्ट छाप दिखाई पड़ती है। यदि आप यह अपेक्षा करते हों कि नाहन क्षेत्र का जन जीवन पूर्णतः पहाड़ी संस्कृति पर आधारित होगा तो यह गलत है।

दरअसल, भौगोलिक स्थिति के कारण भी रियासत काल के समय से ही नाहन की संस्कृति अलग ही दिखाई पड़ती थी। सिरमौर क्षेत्र को हम मुख्यतः दो भागों में बांटते हैं। गिरी पार और गिरी वार क्षेत्र। गिरी द्वारा विभाजित क्षेत्रों की संस्कृति में काफी भिन्नता है। किन्तु नाहन क्षेत्र में हमे तीसरी श्रेणी की संस्कृति देखने को मिलती है। जिसका मूल आधार सिरमौर के सीमावर्ती क्षेत्र हरियाणा और उत्तर प्रदेश के मैदानी क्षेत्र हैं।

नाहन क्षेत्र के खानपान की बात करें तो यह मूलतः मैदानी भागों जैसा ही है। यहां पर पहाड़ी जीवन के खानपान अत्यंत थोड़े दिखाई पड़ते हैं। इसी तरह यहां का पहरावा भी पहाड़ी कल्चर से भिन्न है और यह भी मैदानी भागों जैसा ही है। नाहन क्षेत्र के त्योहार भी मैदानी भागों से प्रभावित रहे हैं। यहां आयोजित होने वाले त्यौहार यद्यपि पूर्णतः पारम्परिक त्योहार हैं किन्तु इनके आयोजन की पद्वति मैदानों जैसी ही है।

नाहन क्षेत्र के जन-जीवन और इसकी संस्कृति को प्रभावित करने वाला सबसे बड़ा कारक है नाहन फाऊंडरी। शायद किसी ने भी इस ओर गौर नहीं किया। 1881 में नाहन फांडरी की स्थापना के उपरांत नाहन क्षेत्र के सांस्कृतिक जीवन में बड़ा बदलाव आया। फाउंडरी में काम करने के लिए इंजिनियरों सहित जो कुशल और अनुभवी कामगार आए वे मुख्यतः हरिद्वार, रूड़की, सहारपुर, पूरब और हरियाणा के लोग थे। इनमें से कुछ पंजाब के लोग भी थे। सैंकड़ों की संख्या में बाहर से आए कामगार देखते देखते नाहन की पहचान बन गए और एक समय बाद नाहन की संस्कृति का मूल तत्व। इसीलिए हम नाहन में हुए सांस्कृतिक बदलाव के लिए नाहन फाउंडरी को मूल वजह मानत हैं।

आपको जानकर अचरज होगा। नाहन क्षेत्र में हमारे अपने ही सिरमौर के पहाड़ी क्षेत्रों के लोगों को अभी भी ‘पहाड़ी’ कहा जाता है। शहर के कई लोग तो पहाड़ के लोगों अथवा गिरी पार के क्षेत्र के लोगों को ‘सिरमौरी’ कहकर पुकारते हैं। सुनने में यह बड़ा अजीब लगता है। लेकिन सत्य यही है। इसकी वजह, जैसे कि पहले कहा गया नाहन क्षेत्र में रहने वाले ज्यादातर लोग मैदानी क्षेत्रों से प्रभावित हैं।

नाहन क्षेत्र के लोगों की भाषा भी सिरमौर की सिरमौरी बोली से बिल्कुल भिन्न है। यहां हरियाणवी और उत्तर प्रदेश की मिश्रित भाषा का प्रयोग होता है। नाहन की भाषा के बारे में अक्सर तंज कसे जाते हैं। क्योंकि इसमें पहाड़ी पुट बिल्कुल भी नहीं है। न यह ठेठ हरियाणवी है और न सहारनपुरी।  बस इन दोनों का मिश्रण खड़ी बोली है। इसलिए नाहन आकर सिरमौरी भाषा की अपेक्षा न करें।   

नाहन के संपूर्ण कल्चर को ठीक से जानना अत्यंत कठिन कार्य है। यदि आप फिर भी यह जानना चाहते हैं तो आपको यहां लंबा समय गुजारना पड़ेगा और इतिहास में झांकना पड़ेगा।

नाहन क्षेत्र के लोगों का मुख्य व्यवसाय व्यापार, श्रम, सरकारी सेवा और कृषि है। उस लिहाज से यह एक परम्परागत शहर है।

नाहन मुख्यतः हिन्दू बाहुल क्षेत्र है। यहां मुस्लिम और सिख काफी संख्या में रहते हैं। कुछ जैन परिवार भी रियासतकाल से रहते आए हैं।

 

 

(नोटः उपलब्ध जानकारी के अनुसार हमने इस आर्टिकल को तथ्यपरक बनाने का प्रयास किया है। यदि आपको इसमें किसी तथ्य, नाम, स्थल आदि के बारे में कोई सुधार वांछित लगता है तो info@mysirmaur.com पर अपना सुझाव भेंजे हम यथासंभव इसमें सुधार करेंगे)

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